मानव गरिमा के रक्षकः हज़रत मुहम्मद स.
गरिमा
एवं सम्मान मनुष्य को उसके सृष्टा ने दिया है। यह अधिकार उसे इस लिये नहीं
मिला है कि उसने कोई विशेष कर्म किये थे, बल्कि जन्म से ही मिला है। उसका
मनुष्य होना ही उसे स्वतः सम्मान एवं गरिमा का अधिकारी बनाता है। मनुष्य
ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है अतः उसे सृष्टि की अन्य रचनाओं पर वरीयता
प्राप्त है। अतः ईश्वर ने यह निश्चित कर दिया कि मनुष्य ईश्वर के अतिरिक्त
किसी के आगे नहीं झुकेगा। यही मनुष्य का सबसे बड़ा सम्मान है।
ईश्वर ने मनुष्य को पैदा करने से पहले ही उसके जीवित रहने के लिये संसाधन पैदा किये। फिर उसे बुद्धि और विवेक प्रदान किया। सही और ग़लत का निर्णय करने की क्षमता दी और यही नहीं पहले मनुष्य को अपना प्रतिनिधि एवं संदेशवाहक नियुक्त कर के मनुष्य के लिये मार्गदर्शन का भी प्रबन्ध किया। इसके बाद भी, जैसे जैसे मनुष्य का विकास होता गया और उसे नई-नई समस्याओं का सामना करना पड़ा, ईश्वर ने फिर मनुष्यों ही में से सर्वश्रेष्ठ लोगों को अपना दूत नियुक्त कर के हर युग में उसके मार्गदर्शन का प्रबन्ध किया। हर उस स्थान पर जहाँ मनुष्य बसते थे, ईश्वर ने अपने दूत भेजे। सबसे अन्त में, जब मानव ने इतना विकास कर लिया कि वह ज्ञान को सुरक्षित रखना सीख गया, ईश्वर ने अपने अन्तिम दूत के रूप में हज़रत मुहम्मद (उन पर ईश्वर की असीम कृपा एवं शान्ति हो) को चुना।
मानव गरिमा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मानव के अधिकार हैं जो उसे बिना किसी भेद के मात्र मनुष्य होने के कारण प्राप्त हैं। हज़रत मुहम्मद स. पर अवतरित ईश-वाणी (क़ुरआन) में ईश्वर कहता है
ईश्वर ने मनुष्य को पैदा करने से पहले ही उसके जीवित रहने के लिये संसाधन पैदा किये। फिर उसे बुद्धि और विवेक प्रदान किया। सही और ग़लत का निर्णय करने की क्षमता दी और यही नहीं पहले मनुष्य को अपना प्रतिनिधि एवं संदेशवाहक नियुक्त कर के मनुष्य के लिये मार्गदर्शन का भी प्रबन्ध किया। इसके बाद भी, जैसे जैसे मनुष्य का विकास होता गया और उसे नई-नई समस्याओं का सामना करना पड़ा, ईश्वर ने फिर मनुष्यों ही में से सर्वश्रेष्ठ लोगों को अपना दूत नियुक्त कर के हर युग में उसके मार्गदर्शन का प्रबन्ध किया। हर उस स्थान पर जहाँ मनुष्य बसते थे, ईश्वर ने अपने दूत भेजे। सबसे अन्त में, जब मानव ने इतना विकास कर लिया कि वह ज्ञान को सुरक्षित रखना सीख गया, ईश्वर ने अपने अन्तिम दूत के रूप में हज़रत मुहम्मद (उन पर ईश्वर की असीम कृपा एवं शान्ति हो) को चुना।
मानव गरिमा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मानव के अधिकार हैं जो उसे बिना किसी भेद के मात्र मनुष्य होने के कारण प्राप्त हैं। हज़रत मुहम्मद स. पर अवतरित ईश-वाणी (क़ुरआन) में ईश्वर कहता है
“हमने
आदम की संतान को गरिमा प्रदान की है और उन्हें धरती और सागर में वाहन दिये
और उन्हें पवित्र वस्तुएं जीवन निर्वाह के लिए दीं तथाअपनी अनेकानेक
रचनाओं पर उन्हें वरीयता प्रदान की।” -क़ुरआनः17-70
हज़रत मुहम्मद स. से पहले अरब ही नहीं सारे संसार में मानव गरिमा तार-तार की जा रही थी। शक्तिशाली लोग कमज़ोरों पर अत्याचार कर रहे थे। सारे अधिकार केवल उच्च कुल के लोगों के लिए आरक्षित थे और अन्य लोगों को तो जीने तक का अधिकार नहीं था। हज़रत मुहम्मद स. ने कहा कि मनुष्यों में कोई ऊँचा या नीचा नहीं बल्कि तुम सब आदम की संतान हो। तुम्हारा पिता भी एक ही है और तुम्हारा सृष्टा और पालनहार भी एक ही है। जो अधिकार एक धनवान और बलशाली को प्राप्त हैं वही एक निर्धन एवं कमज़ोर को भी प्राप्त हैं। क़ुरआन ने मनुष्यों की जान को दूसरे के लिये आदर योग्य ठहराया, कहा - “जिसने किसी एक निर्दोष मनुष्य की हत्या की मानो उसने सारी मानवता की हत्या कर दी और जिसने एक मनुष्य की जान बचाई मानो उसने सारी मानवता को जीवन दे दिया।”-क़ुरआनः5:32 ।
हज़रत मुहम्मद स. से पहले अरब ही नहीं सारे संसार में मानव गरिमा तार-तार की जा रही थी। शक्तिशाली लोग कमज़ोरों पर अत्याचार कर रहे थे। सारे अधिकार केवल उच्च कुल के लोगों के लिए आरक्षित थे और अन्य लोगों को तो जीने तक का अधिकार नहीं था। हज़रत मुहम्मद स. ने कहा कि मनुष्यों में कोई ऊँचा या नीचा नहीं बल्कि तुम सब आदम की संतान हो। तुम्हारा पिता भी एक ही है और तुम्हारा सृष्टा और पालनहार भी एक ही है। जो अधिकार एक धनवान और बलशाली को प्राप्त हैं वही एक निर्धन एवं कमज़ोर को भी प्राप्त हैं। क़ुरआन ने मनुष्यों की जान को दूसरे के लिये आदर योग्य ठहराया, कहा - “जिसने किसी एक निर्दोष मनुष्य की हत्या की मानो उसने सारी मानवता की हत्या कर दी और जिसने एक मनुष्य की जान बचाई मानो उसने सारी मानवता को जीवन दे दिया।”-क़ुरआनः5:32 ।
हज़रत
मुहम्मद स. ने एक बार पवित्र घर काबा के सामने खड़े हो कर कहा “ऐ काबा! तू
निश्चय ही सबसे पवित्र और सम्माननीय है परन्तु ईश्वर की दृष्टि में उस पर
विश्वास करने वाले मनुष्य का जीवन और सम्पत्ति कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।”
उस समय मनुष्यों को दास के रूप में बेचा और ख़रीदा जाता था। उन्हें किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त न थे, यहाँ तक कि दास के स्वामी को उसकी बिना कारण हत्या करने तक का अधिकार था। हज़रत मुहम्मद स. ने कहा कि ये दास भी तुम्हारे भाई हैं अतः तुम जो खाओ, इन्हें खिलाओ और जो पहनो इन्हें पहनाओ। दासों को स्वतंत्र कराना बहुत बड़ा पुण्य कार्य ठहराया। यहाँ तक कि अरब से दास प्रथा ही समाप्त हो गई। धनवानों से कहा गया कि जो कुछ तुम कमाते हो उसमें निर्धनों और असहायों का भी हिस्सा है, अतः उन की आवश्यकताएं पूरी करना तुम्हारा कत्र्तव्य है और ऐसा कर के तुम उन पर कोई एहसान नहीं कर रहे हो।
नारी को बराबरी का स्थान दिया, कहा कि स्त्रियाँ तुम्हारे लिये और तुम उनके लिये परिधान के समान हो जो सौंदर्य बढ़ाता और रक्षा भी करता है। अरब में उन दिनों बेटियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था, हज़रत मुहम्मद स. ने कहा कि जो बेटी की परवरिश करेगा, बेटे और बेटी में अन्तर नहीं करेगा वह मरने के बाद स्वर्ग में जाएगा। बेटी को वह सम्मान मिला जिसका उसे वास्तव में अधिकार था। नारी को सम्पत्ति रखने, कमाने और अपनी मरज़ी से ख़र्च करने का अधिकार दिया। पिता और पति की सम्पत्ति की उत्तराधिकारिणी बनाया। हर व्यक्ति को विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता दी ओर अपनी पसंद का धर्म अपनाने का अधिकार दिया। क़ुरआन में कहा गया कि धर्म में कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं है, पथभ्रष्टता एवं मार्गदर्शन दोनों अलग अलग बता दिये गए हैं अतः जो कोई चाहे अपनी मर्ज़ी का रास्ता चुन सकता है। इस प्रकार हज़रत मुहम्मद स. ने मानव मात्र को वह गरिमा दी जिसका वह वास्तव में अधिकारी था।
आज फिर से मानव गरिमा को बहुत बड़ा संकट उत्पन्न हो गया है। मनुष्यों की जान, माल, इज़्ज़त, आबरू सब ख़तरे में हैं। आज हर शक्तिशाली कमज़ोर को सारे अधिकारों से वंचित कर देना चाहता है। जिन्हें हम अपना मार्गदर्शक समझते हैं उन्होंने भी हमें धोखा दिया, कहीं अपने जैसे मनुष्यों के आगे झुका दिया तो कभी अन्य निर्जीव वस्तुओं आदि के आगे। आज फिर से मनुष्य को उन्ही जीवन दायिनी शिक्षाओं की आवश्यकता है जो आज से साढ़े चौदह सौ साल पहले हज़रत मुहम्मद स. ने दी थीं। तभी मनुष्य की खोई हुई गरिमा और सम्मान उसे वापस मिल सकता है।
उस समय मनुष्यों को दास के रूप में बेचा और ख़रीदा जाता था। उन्हें किसी प्रकार के अधिकार प्राप्त न थे, यहाँ तक कि दास के स्वामी को उसकी बिना कारण हत्या करने तक का अधिकार था। हज़रत मुहम्मद स. ने कहा कि ये दास भी तुम्हारे भाई हैं अतः तुम जो खाओ, इन्हें खिलाओ और जो पहनो इन्हें पहनाओ। दासों को स्वतंत्र कराना बहुत बड़ा पुण्य कार्य ठहराया। यहाँ तक कि अरब से दास प्रथा ही समाप्त हो गई। धनवानों से कहा गया कि जो कुछ तुम कमाते हो उसमें निर्धनों और असहायों का भी हिस्सा है, अतः उन की आवश्यकताएं पूरी करना तुम्हारा कत्र्तव्य है और ऐसा कर के तुम उन पर कोई एहसान नहीं कर रहे हो।
नारी को बराबरी का स्थान दिया, कहा कि स्त्रियाँ तुम्हारे लिये और तुम उनके लिये परिधान के समान हो जो सौंदर्य बढ़ाता और रक्षा भी करता है। अरब में उन दिनों बेटियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था, हज़रत मुहम्मद स. ने कहा कि जो बेटी की परवरिश करेगा, बेटे और बेटी में अन्तर नहीं करेगा वह मरने के बाद स्वर्ग में जाएगा। बेटी को वह सम्मान मिला जिसका उसे वास्तव में अधिकार था। नारी को सम्पत्ति रखने, कमाने और अपनी मरज़ी से ख़र्च करने का अधिकार दिया। पिता और पति की सम्पत्ति की उत्तराधिकारिणी बनाया। हर व्यक्ति को विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता दी ओर अपनी पसंद का धर्म अपनाने का अधिकार दिया। क़ुरआन में कहा गया कि धर्म में कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं है, पथभ्रष्टता एवं मार्गदर्शन दोनों अलग अलग बता दिये गए हैं अतः जो कोई चाहे अपनी मर्ज़ी का रास्ता चुन सकता है। इस प्रकार हज़रत मुहम्मद स. ने मानव मात्र को वह गरिमा दी जिसका वह वास्तव में अधिकारी था।
आज फिर से मानव गरिमा को बहुत बड़ा संकट उत्पन्न हो गया है। मनुष्यों की जान, माल, इज़्ज़त, आबरू सब ख़तरे में हैं। आज हर शक्तिशाली कमज़ोर को सारे अधिकारों से वंचित कर देना चाहता है। जिन्हें हम अपना मार्गदर्शक समझते हैं उन्होंने भी हमें धोखा दिया, कहीं अपने जैसे मनुष्यों के आगे झुका दिया तो कभी अन्य निर्जीव वस्तुओं आदि के आगे। आज फिर से मनुष्य को उन्ही जीवन दायिनी शिक्षाओं की आवश्यकता है जो आज से साढ़े चौदह सौ साल पहले हज़रत मुहम्मद स. ने दी थीं। तभी मनुष्य की खोई हुई गरिमा और सम्मान उसे वापस मिल सकता है।
-डा. मुहम्मद इक़बाल सिद्दीक़ी
miqbal1959@gmail.com
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